2014 की गर्मियाँ थीं. दिल्ली में चलती बस में सामूहिक बलात्कार के बाद ‘निर्भया’ की मौत और उसके बाद यौन हिंसा के ख़िलाफ़ क़ानूनों को कड़ा किए जाने को एक साल से ज़्यादा हो गया था.
इसी दौरान उत्तर प्रदेश के बदायूं में एक पेड़ पर दो चचेरी बहनों के शव लटके पाए गए और ये भी आरोप लगे कि उनके साथ बलात्कार हुआ था.
दिल्ली से बदायूं के कटरा शहादतगंज गाँव का क़रीब आठ घंटे का सफ़र तय कर वहाँ पहुँचने वाले पहले पत्रकारों में मैं भी थी.
उसी पेड़ के नीचे उन लड़कियों में से एक के पिता ने मुझसे कहा था कि पिछड़ी जाति का होने की वजह से उनकी सुनवाई नहीं हुई, पुलिस ने समय रहते मदद नहीं की और बेटियों की जान चली गई. यौन हिंसा के ख़िलाफ़ आम लोगों में ख़ूब ग़ुस्सा था. मीडिया का जमावड़ा हुआ, सरकार से सवाल पूछे गए और बलात्कार के मामले में कड़े क़ानूनों और जल्द इंसाफ़ के लिए आवाज़ उठी.